हिमांशु कुलकर्णी की रचनाएँ उनके जज्बात और एहसासात का आइना है... उन्हें जब जहाँ जैसा दिखाई दिया है, उसे अपने शब्दों में बयान किया है। उनके इज़हार का फार्म गज़ल है। इन गज़लों में, परम्परागत मीनाकारी नहीं है, शब्दों की प्रचलित लयकारी से भी कहीं कहीं आज़ादी बरती गयी है, मगर जो विशेषता इन्हें रचनात्मक सौंदर्य से सजाती है, वह कवि की ईमानदारी है। उन्होंने जैसा जिया है, वैसा लिखा है। अपने अनुभवोंपर विश्वास और उनको बयान करने की निरन्तर प्यास ने साधारण लफ्ज़ोंको जगमगाया है। और पढने वालों में यह एहसास जगाया है... कि सोना खरा हो तो उसे किसी टकसाल की मुहर की ज़रूरत नहीं होती। मराठी और उर्दू के इस इंटरएक्शन ने न सिर्फ़ उन के अंदाज़ में ताज़ाकारी पैदा की है - एहसासातो जज्बात की ऐसी सूरतें भी कामयाबी से उभारी हैं... जो उनकी गज़लों की अलग से पहचान कराती हैं। निदा फ़ाज़ली